Saturday, October 11, 2008

सच की तलाश में..

किसको देगा सजा तू
कहीकोई काफिर तो हो|
तू तो ख़ुद बंट चुका हैं||
आख़िर अब तेरा सच जाहिर तो हो....

कहा न ढूंढा तुझे मैंने?
इन पथ्थरो के पीछे कोई ईश्वर तो हो|
बहुत सजदे कर लिए तेरे सामने||
आख़िर अब तेरा सच जाहिर तो हो....

इस सच-झूट की उधेड़बुन में
बहुत थक चुका हूँ मैं|
इस अथाह खोज की चाहत में
कही कोई साहिल तो हो ||
आख़िर अब तेरा सच जाहिर तो हो ....

कितना खून बह चुका हैं तेरे नाम पर
तू कातिल हैं या मसीहा ??|
कम-स-कम तेरे अपने तेरे रूप से वाकिफ तो हो
आख़िर अब तेरा सच जाहिर तो हो ....

Tuesday, October 7, 2008

क्यों नहीं उबलता खून हमारा ??



क्यों खून उबलता नहीं मेरे देश के वासी का
क्यों क्लेवर बदलता नहीं मेरे देश की झाँसी का
क्यों झगड़ बैठा हैं वो त्रिशूल पर या दाढ़ी पर
क्यों राजनीति हो रही हैं "नैनो" जैसे गाड़ी पर
क्यों डर बैठा हैं वो बम जैसे खतरों से
ना उम्मीद हो चुके हैं हम इन सरकारी बहरों से
फिर भी,क्यों खून उबलता नहीं मेरे देश के वासी का ??

क्यों ख़ुद पर हो हमला,तो भड़क उठता हैं वो
पर देश के लिए क्या कारण हैं,इस बेरुखी,इस उदासी का
क्यों खून उबलता नहीं मेरे देश के वासी का

कहाँ गुम हो गया हैं "भगत"इन आदिम अंधेरो में
क्यों इंतज़ार करता हैं वो इस सरकारी फांसी का
क्यों काम करता हैं वो इन नेताओ की दासी सा
क्यों खून उबलता नहीं मेरे देश के वासी का

बस एक प्रश्न पूछता हूँ मैं आपसे
क्यों प्रश्न बदलता नहीं मेरे जैसे प्रयासी का.....
क्यों खून उबलता नहीं मेरे देश के वासी का????

Wednesday, October 1, 2008

ज़िन्दगी

कहीं धुएं में उड़ती ज़िन्दगी
कहीं सड़को पर घटती ज़िन्दगी
हें आदमी ने ख़ुद ही बनाई अपनी यह गत
की जीने को तरसी,ख़ुद ही जिंदगी||

न खुली हवा,न सूरज की किरण
आधुनिकता की आड़ में भटकती जिंदगी
न अमीर को सुख,न गरीब को चैन
खुशी की चाह में दहकती ज़िन्दगी
ज़िन्दगी-हे-ज़िन्दगी,जीने की चाह में भटकती ज़िन्दगी ||

भागती ज़िन्दगी,दौड़ती ज़िन्दगी
धर्मों के नाम पर बटती ज़िन्दगी
क्या करेगा इंसान इस ऊँचाई पर पहुँच कर???
जहाँ जीने को तरसी,ख़ुद ही ज़िन्दगी||