Wednesday, March 25, 2009

मजहब नही सिखाता आपस में बैर रखना | पर मजहब में बंट चुका है हिन्दुस्तान हमारा||


बचपन में खूब सुना था,
मजहब नही सिखाता आपस में बैर रखना |
पर मजहब में बंट चुका है हिन्दुस्तान हमारा||

इस आंधी से कौन बचा हैं?
हर एक कट चुका हैं,वतन का दुलारा|
मजहब में बंट चुका हैं हिन्दुस्ता हमारा||

अब करने को क्या बचा हैं?
न खुशियों में बचा हैं आपस में भाईचारा,
निज स्वार्थ की लडाई को बताया मजहब का इशारा|
और शान से घुमा,यहाँ मानवता का हत्यारा,
मजहब में बंट चुका हैं हिन्दुस्ता हमारा||

मन्दिर-मस्जिद के लडाई ही बना जीने का ध्येय हमारा,
खुश होंगे जब बहेगा,किसी कौम का खून सारा|
ना जाने कितने भागो में बटेगा यह गुलिस्ता हमारा,

मजहब में बंट चुका हैं हिन्दुस्ता हमारा||

Saturday, November 22, 2008

तिरंगे में लिपटा चाँद!!!


सन् 2008 का सूरज अस्त होने को हैं पर इस अस्त होते सूरज की लालिमा का रंग तिरंगे में रंगा हैं|
यह प्रभाव हैं मेरे महान देश 'भारत' के बदते हुए कदमो का!

14 नवम्बर,2008 -चाचा नेहरू का जन्मदिन और बाल दिवस(बच्चो का दिन) पर अब यह दिन हमारे लिए कुछ और खास हो गया हैं क्योकि इस दिन हमने चाँद को भी अपने रंग में रंग दिया हैं .....हमारा रंग-"तिरंगा"
अनेकता में एकता के प्रतीक और महान संस्कृतियो का उदगम -भारत अब जा पंहुचा हैं चाँद पर |और इसके साथ ही हमारा शुमार उन चंद देशो की फेहरिस्त में जुड़ गया हैं जो की चाँद को अपने रंग में रंग चुके हैं|

यह एक ऐसी सफलता हैं जिसे पाने के लिए अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश को भी अपनी आज़ादी के बाद 150 से अधिक वर्षो तक का इंतज़ार करना पड़ा था और उसी काम को हमारे देश के दृढ निश्चय वैज्ञानिको ने सिर्फ़ 60 साल के अन्तराल में कर दिखाया
यह बहुत बड़ी उपलब्धि हैं और इस पर हर देशवासी को गर्व हैं |

यह हमारे बदते हुए कदम अभी थमे नही हैं अभी तो हमने चलना सीखा हैं|

अभी तो नपी हैं मुट्ठी भर जमी ,
आगे तो सारा आसमान बाकि हैं|
अभी तो रंगा हैं तिरंगे में सिर्फ़ चाँद को,
आगे तो सारा ब्रहामांड बाकी हैं||

वाकई में देश के वैज्ञानिको ने अब अपना ध्यान केंद्रित कर दिया हैं चाँद पर पहले"भारतीये कदमो पर"
और यह सपना जल्द पुरा भी होने वाला हैं(समाचारों के मुताबिक सन् 2015 तक भारतीये कदम चाँद पर
पड़ जायेंगे) और दुसरे ग्रहों पर भी विशेष प्रकार के यान भेजने की तयारी की जा रही हैं|

यह तेजी से बदते कदम वाकई कबीले तारीफ हैं और प्रतिक हैं हमारे दृढ निश्चय और हमारी अग्रसर सोच का|

मैं देश के वैज्ञानिको और जनता को इस सफलता पर बधाई देता हूँ और आशा करता की हम इसी तरह कदम से कदम मिलते हुए नई ऊचाइयो को पाते रहेंगे और तिरंगे की शान को बनाये रखेंगे |

जय हिंद!

----आमिर खान"तिरंगा"(देश को समर्पित)

Wednesday, November 12, 2008

हम तो सिर्फ़ हिन्दुस्तानी हैं,हमें वोहि रहने दो


पिछले कुछ दिनों से मैं अपनी परीक्षा में व्यस्त था इसलिए अपने विचार प्रकट नही कर पाया...
पर पिछले दिनों देश में हो रही घटनाओ ने मुझे व्याकुल कर दिया और अपनी कलम का मुख खोलने पर मजबूर कर दिया ....इन सभी घटनाओ में जिसने ने मुझे सबसे जयादा परेशान किया वो हैं क्षेत्रवाद की राजनीती!!!

सन 1947 में एक बँटवारे को झेलने के बाद शायद ही कोई देशवासी एक और बँटवारे की चाह रखता होगा...और नए पकिस्तान के बारे सोचता होगा...पर हमारे देश का दुर्भाग्य हैं की हमारे नेताओ में कोई न कोई "जिन्ना" बनने की चेष्टा समय-समय पर करता रहता हैं...और उनका मकसद उस क्षेत्र की जनता का विकास करना नही बल्कि अपनी जेब भरना और सत्ता पर काबिज होना हैं ... ऐसे वक्त में देश की जनता को चाहिए की वो आगे आए और देश की एकता को बनाये रखने के लिए इन सोच के नेताओ को जड़ो से उखड फेके ....

इस हालत पर देश की जनता और इन नेताओ से मेरा यही आह्वान हैं ....

अरे इन नए "जिन्नाओ"की बातों में न आओ,
इन्हे जो कहना हैं,इन्हे कहने दो ।
नही बनना हमें मराठी या बिहारी,
हम तो सिर्फ़ हिन्दुस्तानी हैं,हमें वोहि रहने दो ।।

निज स्वार्थ में अंधे इन लोगो का क्या हैं?
सोचते हैं,जितना खून बहता हैं,बहने दो ।
देश का विकास गया भाड़ में,
जनता का पैसा अपने अकाउंट में सुरक्षित रहने दो॥
अरे जल्लादों,कम से कम अब तो खुश रहो।
हमें तो मत बाटों,हम तो सिर्फ़ हिन्दुस्तानी हैं,हमें वोहि रहने दो।।

ख़ुद आलीशान बंगलो में बैठे रहे ,
क्या फर्क पड़ता है,आम आदमी को जो सहना हैं,उसे सहने दो।
अभी तो कुछ "राहुलो"का खून बहा हैं,अभी तो औरो का भी बहने दो॥

अरे हमें अब तो बख्श दो!!और इस तांडव को रोको ।
हमें मत बांटो ,
हम तो सिर्फ़ हिन्दुस्तानी हैं,हमें वोहि रहने दो।।

अब जरुरत हैं हमें एक साथ इस के ख़िलाफ़ आवाज उठाने की और "इस" प्रकार की घटिया सोच रखने वाले लोगो को यह बताने की पहले हमारा देश हैं और हम हिन्दुस्तानी हैं, बाद में हम पंजाबी,राजस्थानी,मराठी,गुजरती ,बिहारी या अपने अपने राज्यों और क्षेत्रो से हैं..आइये इस मुहीम को आगे बढाइये और देश को विकास के पथ पर ले चलिए...

जय हिंद !
(मुझे पहले अपने हिन्दुस्तानी होने पर गर्व हैं न की राजस्थानी)।


Saturday, October 11, 2008

सच की तलाश में..

किसको देगा सजा तू
कहीकोई काफिर तो हो|
तू तो ख़ुद बंट चुका हैं||
आख़िर अब तेरा सच जाहिर तो हो....

कहा न ढूंढा तुझे मैंने?
इन पथ्थरो के पीछे कोई ईश्वर तो हो|
बहुत सजदे कर लिए तेरे सामने||
आख़िर अब तेरा सच जाहिर तो हो....

इस सच-झूट की उधेड़बुन में
बहुत थक चुका हूँ मैं|
इस अथाह खोज की चाहत में
कही कोई साहिल तो हो ||
आख़िर अब तेरा सच जाहिर तो हो ....

कितना खून बह चुका हैं तेरे नाम पर
तू कातिल हैं या मसीहा ??|
कम-स-कम तेरे अपने तेरे रूप से वाकिफ तो हो
आख़िर अब तेरा सच जाहिर तो हो ....

Tuesday, October 7, 2008

क्यों नहीं उबलता खून हमारा ??



क्यों खून उबलता नहीं मेरे देश के वासी का
क्यों क्लेवर बदलता नहीं मेरे देश की झाँसी का
क्यों झगड़ बैठा हैं वो त्रिशूल पर या दाढ़ी पर
क्यों राजनीति हो रही हैं "नैनो" जैसे गाड़ी पर
क्यों डर बैठा हैं वो बम जैसे खतरों से
ना उम्मीद हो चुके हैं हम इन सरकारी बहरों से
फिर भी,क्यों खून उबलता नहीं मेरे देश के वासी का ??

क्यों ख़ुद पर हो हमला,तो भड़क उठता हैं वो
पर देश के लिए क्या कारण हैं,इस बेरुखी,इस उदासी का
क्यों खून उबलता नहीं मेरे देश के वासी का

कहाँ गुम हो गया हैं "भगत"इन आदिम अंधेरो में
क्यों इंतज़ार करता हैं वो इस सरकारी फांसी का
क्यों काम करता हैं वो इन नेताओ की दासी सा
क्यों खून उबलता नहीं मेरे देश के वासी का

बस एक प्रश्न पूछता हूँ मैं आपसे
क्यों प्रश्न बदलता नहीं मेरे जैसे प्रयासी का.....
क्यों खून उबलता नहीं मेरे देश के वासी का????

Wednesday, October 1, 2008

ज़िन्दगी

कहीं धुएं में उड़ती ज़िन्दगी
कहीं सड़को पर घटती ज़िन्दगी
हें आदमी ने ख़ुद ही बनाई अपनी यह गत
की जीने को तरसी,ख़ुद ही जिंदगी||

न खुली हवा,न सूरज की किरण
आधुनिकता की आड़ में भटकती जिंदगी
न अमीर को सुख,न गरीब को चैन
खुशी की चाह में दहकती ज़िन्दगी
ज़िन्दगी-हे-ज़िन्दगी,जीने की चाह में भटकती ज़िन्दगी ||

भागती ज़िन्दगी,दौड़ती ज़िन्दगी
धर्मों के नाम पर बटती ज़िन्दगी
क्या करेगा इंसान इस ऊँचाई पर पहुँच कर???
जहाँ जीने को तरसी,ख़ुद ही ज़िन्दगी||